ख़बर दुर्ग, छत्तीसगढ़ से है…
जहाँ राज्य के 70 हज़ार से अधिक बुनकर इस समय गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
हैंडलूम की परंपरा को संजोए ये बुनकर आज ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ रोज़गार ही नहीं, उनके परिवारों का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है।
बुनकर संगठनों का आरोप है कि शासन के साफ़ निर्देशों के बावजूद
कई सरकारी विभाग स्थानीय बुनकरों को नज़रअंदाज़ कर
बाहरी राज्यों से पावरलूम कपड़ा खरीद रहे हैं।
यह न केवल छत्तीसगढ़ की पारंपरिक हैंडलूम पहचान को कमजोर कर रहा है,
बल्कि हज़ारों बुनकर परिवारों की आजीविका पर भी सीधा प्रहार है।
स्थानीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और बुनकर सहकारी समितियों से कपड़ा खरीदी अनिवार्य होने के बावजूद
बड़े विभागों द्वारा ऑर्डर न देने से
उत्पादन लगातार ठप पड़ता जा रहा है।
नतीजा—बुनकरों की आय तेजी से घट रही है, और कई परिवारों में दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता जा रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग को हर साल
55 से 60 लाख यूनिफॉर्म सेट,
यानी करीब 150 से 160 लाख मीटर कपड़े की जरूरत होती है।
इतनी बड़ी मांग के बावजूद बुनकरों तक पर्याप्त ऑर्डर नहीं पहुँच रहा।
अगर इन ऑर्डरों में से केवल आधा भी स्थानीय उत्पादन को दिया जाए,
तो हजारों परिवारों को स्थायी रोजगार मिल सकता है।
दुर्ग में आयोजित बुनकर सम्मेलन में
संघ ने सरकार से भावनात्मक अपील करते हुए कहा कि
बाहरी खरीदी पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए
और सिर्फ छत्तीसगढ़ निर्मित कपड़ा ही खरीदा जाए।
बुनकर संघ ने यह भी चेतावनी दी कि
यदि जल्द ठोस समाधान नहीं निकाला गया,
तो वे राज्यव्यापी आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
बुनकरों का कहना है कि यह सिर्फ कपड़े का व्यापार नहीं…
यह उनकी कला, उनकी परंपरा, और उनके पूरे परिवार की रोज़मर्रा की जिंदगी का सवाल है।
उनका कहना है—
“सरकार यदि हमारी विरासत को नहीं बचाएगी… तो आने वाली पीढ़ियों तक यह हुनर पहुंच ही नहीं पाएगा।”
बुनकर समुदाय की यह पुकार…
अब सरकार के अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही है।

